"अंदर की बातें.."
ये ख़यालात क़बतक हैं ? कहाँतक हैं ? कहीं रुकेंगे भी या पूरी ज़िंदगीभर ऐसेही साथ रहेंगें मेरे अतीत तक पता नहीं। ज़िंदगी का वो भी एक दौर था जब कुछ आज जैसे ही ख़यालात जहन में आया करतें थे। तब लगता था कि अपनीं भी ज़िंदगी में ऐसा वक़्त आएगा जब आज की शिकायतें तब गुज़रे हुए कल की यादें लगेगीं। आज जो सपनें हैं वो कल हक़ीक़तें बन जाएगी। सच कहुँ तो वो भी दौर आया था ज़िंदगी में। एक सपनें की तरह नहीं बल्कि क़ुछ उसके जैसा ही लगता था। सब लोग थोड़ी-बहुत इज्ज़त देते थे, अपने काम से पैसे मिलते थे, जो ख़्वाब पैसों से पूरें किए जा सकतें हैं उसके लिए बॅकअप मिल गया था, और सबसे अहम् और महत्वपूर्ण बात ये थी कि, अब और ज़िंदगी में करना क्या हैं? ये सवाल दिल को चीरता नहीं था। इन दिनों की तरह.. हाँ.. इन दिनों मैं और कुछ सोचता हूँ भी या नहीं पता नहीं। और उसके बाद एक दौर आया जो आज चल रहा हैं, ये कुछ पहले वाले जैसा ही हैं। बस कुछ बातें ज्यादा समझने लगीं है। हो सकता हैं कि ये हरदीन दिल को सुकून पहुंचाए बिना सोने के लिए ले जानेवाला दौर जल्द ही ख़त्म हो या फिर नहीं भी। अच्छा होनें की आशा करनें में क्या बुराई है?.. बहोत ज्यादा तकलीफ़ हो...