#यादें.. भाग-३

ज़िंदगी की बहोत सारी यादें इस पहाड़ के इर्द गिर्द में समाई हुई है। हमारें जीवन के किसी दौर में ऐसी कई खास चीजें होती हैं जिसके साथ हम बहोत दिनों तक जुड़कर रहना पसंद करते हैं। वो चाहे हम चाहकर करते हो या न चाहते हुए भी। इस तस्वीर में जो पहाड़ दिखाई दे रहा है उसके पीछे वाली बाजू में मैंने कई दिन निकाले हैं। जो बंदा फ़ौज में भर्ती हो जाता हैं उसे ऐसे दिन जीना कोई बड़ी बात नही लेकिन हमारे सभी के ज़िंदगी में हर एक चीज़ पहली बार होती है। ये पहाड़ों में दिन निकालना मेरे लिए पहली बार था शायद इसलिए इसकी यादें मेरे खून में इतनी ज़्यादा समाई हुई हैं कि मैं चाहूं तो भी इनसे छुटकारा नहीं पा सकता। बुनियादी प्रशिक्षण के आखरी दौर में फ़ायरिंग याने गोलीबारी का पाठ पढ़ना होता था। वो गोलीबारी का प्रशिक्षण चार हफ़्ते याने लगभग एक महीना चलता था। मैं सेना के कोअर में होने के कारण मुझे कुछ हल्के हल्के हथियारों का ही प्रशिक्षण मिलने वाला था। हल्के हल्के मतलब INSAS 5.56MM, CMG, LMG, SLR इस प्रकार के हथियार। इससे पहले जिंदगी में दीवाली के दौरान खिलौने में खेलने वाले पिस्तौल तक ही मेरी ज्ञान क्षमता वाकिफ़ थी।...