#पुरानी बातें..
आजकल लगता हैं मुझें
खो जाऊं कहीं मैं..
हाँ सच में
मैं खोना चाहता हूँ खुद को..
बस वो खोनें की जग़ह जब सोचता हूँ तब
तब मुझें दिखती हैं,
वो तेरी खुली ज़ुल्फ़ों की लंबी सी घनघनाहट..
बहते झरनों की तरह मुझें पाग़ल कर देने वाली वो तेरी मुस्कुराहट..
मैं जब देखुँ उन्हें तो शर्म से लाल होनेवाली गालों की वो आफ़त..
मुझें मिलनें के लिए तरसने वालें बाहों की आपस में होनेवाली तड़प..
ये सब चीज़ें दिखती हैं मुझें ख़ुद को खोनें के लिए,
पर बेचारा दिल फ़िर भी नहीं मानता..
वो चाहतां हैं कि मैं खो जाऊँ,
मैं खो जाऊँ क़िताब के पन्नों में
मैं खो जाऊँ पसीनें के एक एक बूँद में
मैं खो जाऊँ लगन के हर एक पल में
मैं खो जाऊँ उन बुलंदियों में जो मुझें दिमाग़ की नहीं दिल की सुन नें को कहें..
हां मैं भी अब यहीं चाहतां हूँ,
हो कहीं भी लेक़िन
ख़ुद को खोना चाहतां हूँ..
(तारीख़ याद नहीं लेक़िन बेसिक ट्रेनिंग के दौरान स्पोर्ट barack के पीछे बैठकर शाम के 7-8 बजे के क़रीब लिखा हैं।)
~ माऊली
❤️
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